युवा आईएएस के सवालों पर मौन क्यों हैं सरकार और आईएएस बिरादरी

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अरुण दीक्षित

भोपाल।मध्यप्रदेश काडर के युवा आईएएस अधिकारी लोकेश कुमार जांगिड़ ने अपने तबादले पर जिस तरह की प्रतिक्रिया दी है उससे राज्य सरकार और देश में सबसे ज्यादा मजबूत मानी जाने वाली आईएएस लॉबी, दोनों ही कटघरे में हैं।चूंकि जांगिड़ ने सीधे मुख्यमंत्री पर उंगली उठाई थी इसलिए उन्हें सरकार से कोई राहत मिलेगी ऐसी उम्मीद तो किसी को भी नही थी। लेकिन आईएएस बिरादरी ने जिस तरह उनकी ओर से मुंह फेरा है वह काबिले गौर है।इससे यह भी साफ हो गया है कि राज्य चाहे कोई भी हो कार्यपालिका अब सिर्फ “सूरजमुखी” की भूमिका निभा रही है।देश के प्रधानमंत्री जिन्हें “कैप्टन” कहते हैं वे अब कठपुतली से ज्यादा कुछ नही बचे हैं।फिलहाल सरकार ने लोकेश जांगिड़ से जवाब तलब कर लिया है।इसके लिये सिविल सेवा नियमों का सहारा लिया गया है।

यह भी संयोग ही है कि 14 साल से ज्यादा समय से राज्य के मुखिया का दायित्व संभाल रहे शिवराज सिंह चौहान के राज में अपने मातहत कर्मचारियों से खुलेआम बसूली करने वाले अफसर के खिलाफ जांच उसे पद पर रख कर की जा रही है और भृष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले युवा अफसर को तत्काल पद से हटा दिया गया है।मजेदार बात तो यह है कि भृष्ट अफसरों को जमीन में गाड़ देने का ऐलान करने वाले मुख्यमंत्री ने अभी तक इस पूरे मामले पर कोई प्रतिक्रिया भी नही दी है।

पहले लोकेश जांगिड़ की बात! लोकेश 2014 बैच के आईएएस अधिकारी हैं।उनकी पहली फील्ड पोस्टिंग श्योपुर जिले के विजयपुर में एसडीएम के तौर पर हुई थी।सूत्रों के मुताविक 35 साल के जांगिड़ काफी तेजतर्रार अफसर हैं।अभी कुछ दिन पहले तक वह बड़वानी जिले में एडीएम थे।लेकिन एक दिन अचानक उन्हें भोपाल में राज्य शिक्षा केन्द्र में तैनात कर दिया गया।चार साल में उनका यह आठवाँ तबादला था।

तबादले के बाद जांगिड़ ने एक तो मुख्यसचिव को पत्र लिखकर डेपुटेशन पर महाराष्ट्र जाने का आवेदन दिया।उसके बाद उन्होंने मध्यप्रदेश के आईएएस अफसरों के व्हाट्सएप ग्रुप में अपनी पीड़ा लिख दी।

उन्होंने लिखा कि उन्हें बड़वानी से सिर्फ इसलिए हटाया गया क्योंकि उनकी बजह से कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा पैसे नही खा पा रहे थे।उंन्होने यह भी लिखा कि कलेक्टर वर्मा ने मुख्यमंत्री के कान भरे और उनका तबादला करा दिया।

यही नही जांगिड़ ने अपनी बिरादरी पर भी तंज किया।उंन्होने लिखा- आज बड़े अफसर “नीरो” के अतिथि बने हुए हैं।रोम का सम्राट नीरो शाही दावतें देता था।एक पार्टी में लाइट चली गयी तो नीरो ने रोशनी के लिए लोगों को जलाना शुरू कर दिया।लेकिन पार्टी जारी रखी।

उन्होंने आईएएस ग्रुप में यह भी लिखा कि मुख्यमंत्री और कलेक्टर एक ही बिरादरी के हैं।मुख्यमंत्री की पत्नी किरार समाज की अध्यक्ष हैं और कलेक्टर की पत्नी सचिव।मैं किसी से डरता नही हूँ।अभी मेरे हाथ घटिया आचरण नियमों में बंधे हैं। रिटायर होने के बाद किताब लिखूंगा।जिसमें सारे तथ्यों का खुलासा करूँगा।

उनकी इस टिप्पणी को आईएएस असोसिएशन के अध्यक्ष अजीत केसरी ने अनुचित बताया।उंन्होने कहा कि अफसर सुधारवादी हो सकते हैं।लेकिन क्रांतिकारी नही। उन्हें (जांगिड़ को) यदि कोई समस्या थी तो वे मुख्यसचिव या सामान्य प्रशासन विभाग को लिखित में बताते।यह उनकी जिम्मेदारी बनती है।उन्होंने जांगिड़ को अपनी पोस्ट डिलीट करने को कहा।लेकिन उन्होंने पोस्ट डिलीट नही की।इस पर उनको ग्रुप से निकाल दिया गया और पोस्ट डिलीट कर दी गयी।

उधर कलेक्टर बड़वानी ने अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन किया है।उंन्होने कहा है कि न मेरी पत्नी किरार समाज की पदाधिकारी हैं।न पहले थी।लोकेश जांगिड़ के तबादले में भी मेरी कोई भूमिका नही है।अन्य आरोपों को भी उंन्होने गलत बताया है।

इस घटनाक्रम के बाद सरकार ने लोकेश जांगिड़ से जवाब तलब किया है।

यह भी संयोग है कि अभी कुछ दिन पहले भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी मोहन मीणा पर विभाग के कर्मचारियों ने गंभीर आरोप लगाए थे।बैतूल में अपर प्रधान मुख्य वन सरंक्षक के पद पर तैनात 1996 बैच के मीणा पर अपने मातहत कर्मचारियों से जबरन बसूली करने और महिला कर्मचारियों का उत्पीड़न करने के आरोप हैं।कर्मचारियों के आंदोलित हो जाने पर भी सरकार ने उन्हें पद से नही हटाया।वे अपने पद पर रहे और जांच समिति ने उनके खिलाफ जांच की।जब महिला कर्मचारियों ने आंदोलन की धमकी तो अभी कुछ दिन पहले मीणा को बैतूल से हटाकर कर भोपाल तैनात किया गया है।जांच अभी भी जारी है।उनके खिलाफ जांच समिति को सबूत भी मिले हैं।लेकिन सरकार ने अभी तक कोई कदम नही उठाया है।

मध्यप्रदेश की नौकरशाही का इतिहास बताता है कि यहां एक से एक शानदार अधिकारी रहे हैं।पूर्व मुख्यसचिव आर पी नरोन्हा और महेश नीलकंठ बुच की मिसालें दी जाती हैं।नरोन्हा की लिखी किताबें आज भी चर्चा में रहती हैं।

पिछले सालों में ऐसे कई अफसर हुये हैं जिन्होंने लीक से हटकर काम किये।इनमें एल के जोशी सुदीप बनर्जी,हर्षमंदर गोपालकृष्णन के नाम लिए जाते हैं।नवाचार के लिए मनोज झालानी, राजेश राजौरा,सुधिरंजन मोहन्ती ,राधेश्याम जुलनियाँ ने भी अपनी पहचान बनाई थी।मोहन्ती और राजौरा को तो अपने प्रयोगों की बजह से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया था।यह अलग बात है कि बाद में मोहन्ती विवादित हुये और जुलनियाँ भी इस समय ठंडे बस्ते में पड़े हैं।

दूसरी तरफ नोटों के बिस्तर पर सोने वाले जोशी दंपत्ति भी मध्यप्रदेश काडर से ही थे।अरविंद जोशी और उनकी पत्नी टीनू जोशी अब सेवा में नही हैं लेकिन भृष्टाचार के मुकदमे अभी भी उनपर चल रहे हैं।करीब डेढ़ दशक पहले उनके घर से ही करोड़ों रुपये बरामद किए गए थे।अरविंद जोशी ने तो अपने परिजनों को भी अपने इस “कारोबार” में शामिल किया था।

जोशी दंपत्ति अकेले नही थे।लेकिन उनकी तरह पकड़ में कोई और नही आया।

एक तथ्य यह भी है कि पिछले सालों में चुनाव आयोग ने चुनाव के दौरान जिन कलेक्टरों को हटाया, उन्हें बाद में शिवराज सिंह ने मलाईदार पदों पर बैठाकर पुरस्कृत किया।राज्य सेवा से अखिल भारतीय सेवा में आये अधिकारी मुख्यमंत्री को ज्यादा प्रिय रहे हैं।अभी अधिकांश जिलों में कलेक्टर प्रमोटी ही हैं।बड़वानी कलेक्टर शिवरराज सिंह वर्मा भी उन्ही में से एक हैं।इंदौर के कलेक्टर मनीष सिंह तो पूरे प्रदेश में छाए हुए हैं।वे भी राज्य सेवा से ही प्रमोट हुए हैं।आईएएस, आईपीएस और आईएफएस सभी काडरों में यही हालत है।यह भी महज संयोग ही है कि पिछले डेढ़ दशक में ऐसा कोई नवाचारी कलेक्टर मध्यप्रदेश में सामने नही आया है।हां पिछले दिनों खण्डवा जिले के कलेक्टर ने अपनी प्रशासनिक अक्षमता का प्रदर्शन जरूर किया था।कोरोना की खबरों को रोकने के चक्कर में पहले उन्होंने मीडिया को दवाब में लेने की कोशिश की और बाद में इसके लिए जिला जनसंपर्क अधिकारी को निलंबित ही करा दिया।यह अलग बात है कि वह फैसला बदला गया।लेकिन कलेक्टर से सरकार ने आज तक कुछ नही कहा।

लोकेश जांगिड़ पहले ऐसे युवा अधिकारी हैं जिन्होंने 7 साल के कार्यकाल में ही दमदारी से अपनी आवाज उठाई है।

उनसे पहले रमेश थेटे बहुत चर्चा में रहे थे।लेकिन थेटे अलग कारणों से चर्चा में आये थे।उन्हें निलंबन का सामना भी करना पड़ा और पदोन्नति भी नही मिली।लेकिन वह जब तक रहे सरकार पर आरोप ही लगाते रहे।आरक्षित वर्ग से होने की बजह से सरकार उनके खिलाफ चाहकर भी सख्त कदम नही उठा पायी थी।

लेकिन सच बोलने के कारण लोकेश जांगिड़ निशाने पर आ गए हैं।सबसे बड़ी बात यह है कि देश को अपने ढंग से चलाने वाले आईएएस अधिकारियों ने उनका साथ नही दिया है।जो नौकरी कर रहे हैं वह तो चुप हैं ही, जो रिटायर हो चुके हैं वह भी अब तक नही बोले हैं।

यह भी संयोग ही है कि शिवराज सिंह की सरकार ने अभी हाल में ही भृष्टाचार के आरोप में एक पूर्व मुख्यसचिव के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है।लेकिन एक युवा आईएएस अधिकारी जो कोरोना के नाम पर हो रहे भृष्टाचार को उजागर कर रहा है उसे पद से हटा दिया है।

फिलहाल इतना तो साफ है कि लोकेन्द्र जांगिड़ को अपनी बिरादरी का साथ नही मिलेगा। राजनीति के लिए कांग्रेस उनकी बात का समर्थन भले ही करे लेकिन मौका आने पर वह भी उन्हें दूर ही रखेगी।वैसे भी हमारे यहां हर कोई चाहता है कि आजाद और भगत सिंह पैदा तो हों पर उसके घर में नहीं ,पड़ोसी के घर में।

लोकेंद्र का क्या होगा यह तो वक्त बताएगा लेकिन इतना साफ है कि उन्होंने बहुत ही गम्भीर आरोप लगाए हैं।यह आरोप सीधे मुख्यमंत्री की ओर इशारा करते हैं।उम्मीद की जानी चाहिए कि मुख्यमंत्री अपनी ओर से स्थिति स्पष्ट करेंगे।वैसे यह पहला मौका नही है।इससे पहले भी वह कई बार निशाने पर आए हैं।

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