एन के त्रिपाठी
ग्वालियर पुलिस अधीक्षक की मेरी नियुक्ति एक संयोग थी।मुझे पुलिस मुख्यालय, भोपाल में सहायक पुलिस महानिरीक्षक के पद पर आफ़िस का काम करते हुए चार वर्ष होने को आ रहे थे।80 के दशक में सहायक पुलिस महानिरीक्षक अपेक्षाकृत बहुत महत्वपूर्ण पद हुआ करता था।अपना कार्य अत्यधिक परिश्रम, निष्ठा तथा रूचिपूर्वक करने के कारण मुझे विशेष शाखा तथा प्रशासन में महत्वपूर्ण पद मिले थे। फिर भी मेरे शुभचिंतकों को इतनी लंबी अवधि तक दफ़्तर में रहना समझ में नहीं आता था और फ़ील्ड में निकालने के लिए सलाह देते थे।वे कहते थे कि ऑफिस में अच्छा काम करोगे तो ऑफिस में ही पड़े रहोगे।उन दिनों अपवादों को छोड़ कर पोस्टिंग के लिए प्रयास करने की प्रथा नहीं थी।
5 मार्च, 1990 को सुंदरलाल पटवा कांग्रेस को हरा कर मुख्यमंत्री बनें। ग्वालियर के श्री शीतला सहाय गृह मंत्री बनाए गए। सिद्धांतवादी श्री सहाय ने ग्वालियर के पुलिस अधीक्षक के लिए नियमानुसार पुलिस महानिदेशक श्री पीडी मालवीय से प्रस्ताव माँगा। श्री मालवीय भी सिद्धांतों और नियमों के बहुत पक्के थे।उन्होंने एक नाम के स्थान पर वरिष्ठता क्रम से तीन अधिकारियों का एक पैनल रिकॉर्ड सहित उन्हें भेज दिया।कुछ दिन बाद श्री मालवीय ने मुझे बुला कर ग्वालियर के स्थानांतरण की सूचना दी। ग्वालियर पुलिस अधीक्षक का पद प्रतिष्ठित होने के साथ-साथ चुनौतीपूर्ण भी था। कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने मुझे वहाँ बहुत सतर्क और सक्रिय रहने की सलाह दी और बताया कि वहाँ पहले दिन से ही परीक्षा प्रारंभ हो जाती है। कुछ लोगों को यह भी आशंका थी कि मैं स्वभाव और क्षमता से ग्वालियर के लिए उपयुक्त नहीं हूँ और मुझे किसी अपेक्षाकृत शांत स्थान पर पदस्थ किया जाना चाहिए था। जल्दी न करते हुए कुछ दिन पुलिस मुख्यालय में रुक कर पुरानी महत्वपूर्ण लंबित फ़ाइलों का निराकरण करने के बाद ही मैं ग्वालियर के लिए रवाना हुआ।
सोमवार, 4 जून, 1990 को मैंने ग्वालियर पुलिस अधीक्षक का कार्यभार संभाला। उस समय कार्यालय जनकगंज क्षेत्र के टकसाल भवन में स्थित था। गर्मियों में कार्यालय सुबह खुल जाता था। मैं प्रांत: कंपू पुलिस मेस से टकसाल कार्यालय के लिए एम्बेसेडर कार में रवाना हुआ।सरकारी कार में बैठने का यह मेरा प्रथम अनुभव था, क्योंकि उस समय केवल अधिक वरिष्ठ अधिकारियों को ही कार दी जाती थी और प्रदेश के केवल चार बड़े शहरों में पुलिस अधीक्षकों को ये गाड़ियाँ दी गई थीं।उत्साह और कुछ संशय के बीच आत्मविश्वास की एक छोटी किरण लेकर मैंने चार्ज लिया। आवश्यक जानकारियां प्राप्त करने के बाद लंच के लिए वापस कार की खुली खिड़कियों से ग्वालियर की कुख्यात गर्मियों की लू के थपेड़ों को सहते हुए पुलिस मेस भोजन के लिए पहुँचा। कुछ ही देर में लंबे तार वाला टेलीफ़ोन लेकर एक जवान मेरे कमरे में आया और बोला कि कंट्रोल रूम से फ़ोन है। फ़ोन पर सूचना मिली कि पनिहार ग्राम में भीड़ इकट्ठी हो गई है और लोग किसी बात पर बहुत उत्तेजित है।यह भी पता चला कि पनिहार थाने का पुलिस स्टाफ़ भीड़ में घिरा हुआ है।बिना एक क्षण भी विचार किये मैं तत्काल गाँव के लिए रवाना हो गया और पुलिस कंट्रोल रूम को अतिरिक्त बल भेजने के लिए निर्देश दिया।
एक दिन पहले रविवार को क़स्बेनुमा गाँव पनिहार के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति प्रभुदयाल पांडे जी की गाँव के ही एक सोलंकी परिवार द्वारा खुलेआम हत्या कर दी गई थी।गाँव पहुँचते ही एक बड़ी भीड़ ने मुझे चारों ओर से घेर लिया और तत्काल हत्या के मुख्य आरोपी नवयुवक बंटी सोलंकी को गिरफ़्तार करने की माँग की। भीड़ कोई बात सुनने को तैयार नहीं थी और बहुत आक्रामक थी और पथराव का अंदेशा का था। सौभाग्यवश भीड़ में मुझे उसी गाँव के मेरी पूर्व एसएएफ बटालियन के एक सेवानिवृत्त प्रधान आरक्षक एवं बटालियन के अराजपत्रित संघ के अध्यक्ष हितवल्लभ पाण्डे मिल गये और उनसे मैंने लोगों को समझाने के लिए कहा। भरी धूप में बहुत देर बाद और काफ़ी मशक़्क़त के बाद कुछ उत्तेजना कम हुई और घटना स्थल आदि देखने के बाद मैं पांडे परिवार के घर चर्चा के लिए पहुँच पाया। शाम तक स्थिति मेरे बार- बार आश्वस्त करने पर सामान्य हुई और मैं वापस पुलिस मेस आ गया।
बाद मे ज्ञात हुआ कि दो वर्ष पूर्व ही सोलंकी परिवार के मुखिया कप्तान सिंह सोलंकी की हत्या हुई थी जिसमें पांडे परिवार का हाथ होने का आरोप था। पांडे परिवार इससे इंकार करता था और उसका कहना था कि यह हत्या पारिवारिक है। उस प्रकरण में पांडे परिवार के सदस्यों की गिरफ़्तारी भी हुई। उस हत्या का बदला लेने के लिए प्रभु दयाल पांडे की हत्या की गई थी।बताया गया कि रविवार को महाभारत सीरियल में बदला लेने का दृश्य देखने के बाद सोलंकी परिवार के लोग उत्तेजित हो गए और घर से निकल कर हत्या कर दी।कुछ गिरफ्तारियां तुरंत की गई परन्तु बंटी सोलंकी को काफ़ी दिनों बाद ही गिरफ़्तार किया जा सका। वर्षों बाद जब मैं पुलिस महानिरीक्षक बनकर ग्वालियर पुनः पदस्थ हुआ तो पता चला कि सामाजिक दबाव में दोनों पक्षों में समझौता हो गया था और न्यायालय में उन्होंने गवाही बदल दी। प्रभुदयाल पांडे जी के पुत्र रमेश पांडे कांग्रेसी नेता हैं और उनसे आज भी मेरे संबंध है। सोलंकी परिवार के मुखिया लक्ष्मण सिंह सोलंकी ने पनिहार में एंबी रोड पर एक ढाबा खोलकर मुझे भोजन हेतु आमंत्रित किया और मैं वहाँ सहर्ष गया।
इस प्रकार पहले दिन उस गर्म और उत्तेजनापूर्ण दोपहर में ग्वालियर से मेरा प्रथम परिचय हुआ।




