दुबई में रहस्यमयी हालातों में मौत, लकड़ी के ताबूत में लौटा सुमेर सिंह

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झुंझुनूं: रोजगार की तलाश में दुबई गए झुंझुनूं के रामपुरा गांव निवासी सुमेर सिंह मीणा की मौत के तीन महीने बाद उनका शव शुक्रवार को पैतृक गांव पहुंचा, तो गांव में मातम पसर गया। पत्नी ग्यारसी देवी बेसुध हो गईं, मां धापा देवी बेहोश हो गईं और बेटी रेणु ताबूत से लिपटकर रोती रही— पापा को नींद में मार दिया, किसने मारा?

कर्ज लेकर गया था विदेश, लौटे तो ताबूत में

सुमेर सिंह ने जयपुर के एजेंट कमलेश सोनी को 1 लाख रुपये देकर अगस्त 2024 में दुबई की कंस्ट्रक्शन कंपनी ‘अग्निश’ में नौकरी जॉइन की थी। यह रकम उन्होंने झुंझुनूं के खरिया गांव के गिरधारी मूरोत से कर्ज ली थी।

शुरुआत में सब कुछ सामान्य था, लेकिन फरवरी 2025 के बाद हालात बिगड़ने लगे। मार्च में सुमेर ने आखिरी बार परिवार से बात की और कहा, कंपनी पैसे नहीं दे रही। नौकरी छोड़ रहा हूं। बहुत परेशान हूं। समझ नहीं आ रहा क्या करूं। इसके बाद से उसका फोन बंद हो गया और संपर्क पूरी तरह टूट गया।

जॉब छोड़ी, टिकट के पैसे भी नहीं थे

परिजनों ने जब एजेंट से संपर्क किया तो वह टालमटोल करने लगा। इतना ही पता चला कि सुमेर कंपनी से जॉब छोड़ चुका है। किसी होटल में भी कुछ दिन काम किया, लेकिन वहां भी नहीं टिक पाया। बेरोजगारी, रहने और खाने की दिक्कतें उसके सामने थीं। टिकट के पैसे भी नहीं थे, जिससे भारत लौट सके।

2 जुलाई को दुबई से मिली मौत की सूचना

2 जुलाई को सुमेर के जीजा श्रवण कुमार को दुबई पुलिस से सूचना मिली कि सुमेर का शव एक कंस्ट्रक्शन साइट पर मिला है। पुलिस रिपोर्ट में कहा गया कि वह सो रहा था, तभी एक ट्रक ने उसे कुचल दिया। लेकिन परिजन और सामाजिक संस्थाएं इस थ्योरी से संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि यह केवल दुर्घटना नहीं, संभवतः लापरवाही या सोची-समझी चूक का मामला हो सकता है।

शव को भारत लाने के लिए दुबई की एजेंसी ने 1.75 लाख रुपये की मांग की थी। इसके बाद श्रवण कुमार ने अमेरिका में बसे राजस्थान एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका (RANA) के अध्यक्ष प्रेम भंडारी से संपर्क किया। प्रेम भंडारी ने भारतीय दूतावास, दुबई प्रशासन और जिला प्रशासन के माध्यम से शव को भारत भिजवाया।

सुमेर की बेटी रेणु ने इस साल 12वीं पास की है। लेकिन अब आगे पढ़ाई हो पाएगी या नहीं, यह तय नहीं है। पत्नी और मां मानसिक रूप से बेहद अस्थिर हैं। बेटे प्रदीप ने कहा, पापा ने हमें पढ़ाने के लिए मजदूरी की, अब हम अकेले रह गए हैं। घर की हालत खराब है और कर्ज भी चुकाना है।गांव के सरपंच धर्मपाल जांगिड़ ने कहा कि सुमेर को विदेश भेजने की प्रक्रिया में लापरवाही हुई है। न कोई ठोस डॉक्यूमेंट, न कोई सुरक्षा। एजेंट के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए और सरकार को पीड़ित परिवार को मुआवजा देना चाहिए।

गांव के पूर्व एजेंट विनोद कुमार ने भी पुष्टि की कि सुमेर ने इस बार कमलेश सोनी के जरिए विदेश का रुख किया था। उसे अग्निश कंपनी छोड़ने के बाद कोई स्थिर नौकरी नहीं मिल पाई।

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