अरविंद तिवारी
बात यहां से शुरू करते हैं…
मध्यप्रदेश के भाजपा नेताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी नसीहत दे दी। प्रदेश के ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों में प्रधानमंत्री की सभा कराने के प्रस्ताव को मोदी ने एक सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वे केवल वहीं सभा लेंगे, जहां भाजपा कड़े मुकाबले में है और उनके पहुंचने से पार्टी उम्मीदवार को फायदा मिले। बकौल मोदी मैं मक्खन पर नहीं बल्कि पत्थर पर लकीर खींचने में भरोसा रखता हूं। प्रधानमंत्री के रुख को देखते हुए यह तो साफ हो गया है कि अब इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर जैसे संसदीय क्षेत्रों में उनकी सभा की कोई संभावना नहीं है। वैसे इन क्षेत्रों के भाजपा उम्मीदवार भी खुद को जीता हुआ मानकर ही चल रहे हैं।
मुख्यमंत्री के अंदाज से हैरान हैं वरिष्ठ मंत्री
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के अंदाज में उनके मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्रियों को चौंका रखा है। जब यादव की ताजपोशी हुई थी, तब उनसे नजदीकी को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए थे। मंत्रिमंडल के गठन के बाद कुछ मंत्रियों ने यह अहसास कराने की कोशिश भी की थी कि वे जैसा चाहेंगे, यादव वैसा ही करेंगे। यादव भी शुरू में भाजपा की राजनीति में अपने से वरिष्ठ इन नेताओं को पूरा सम्मान देते रहे। अब स्थिति उलट है। यादव ने इन दिग्गजों को झटका देना शुरू कर दिया है और जिस काम में यह मंत्री रुचि दिखाते हैं, उसके विपरीत आदेश हो जाते हैं। ये तो शुरुआत है, आगे देखते हैं और क्या-क्या होता है।
सिंधिया हाउस में पुरुषोत्तम पाराशर की वापसी
एक राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले पुरुषोत्तम पाराशर की आखिरकार सिंधिया हाउस में वापसी हो गई। मध्यप्रदेश में 2020 में तख्तापलट के कुछ महीने बाद पाराशर ज्योतिरादित्य सिंधिया के ओएसडी की भूमिका छोड़ अपने मूल विभाग में लौट गए थे। इस बार के विधानसभा चुनाव के पहले से उनकी वापसी की चर्चाएं जोर पकड़े हुई थी। कहा जा रहा था कि नए साल की पहली तारीख को जब सिंधिया अपना जन्मदिन मनाते हैं, पाराशर फिर उनके साथ नजर आएंगे। ऐसा हुआ नहीं, तो लगा कि बात आई-गई हो गई, लेकिन मार्च के पहले पखवाड़े में 27, सफदरजंग पर उनकी आमद हो गई। इन दिनों वे गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में सिंधिया को मजबूत करने में लगे हैं।
लोकसभा चुनाव के बाद अस्तित्व में आएंगे संघ के बड़े बदलाव
नागपुर की राष्ट्रीय प्रतिनिधि सभा में मध्यप्रदेश संघ पदाधिकारियों में बड़े बदलाव किए गए। मध्य क्षेत्र में नए क्षेत्र प्रचारक की तैनाती का निर्णय लिया गया और इंदौर तथा भोपाल को नए क्षेत्र प्रचारक मिले। वर्तमान में क्षेत्र और प्रांत प्रचारक का दायित्व निभा रहे दीपक विसपुते और बलिराम पटेल केंद्र में नई भूमिका में लाए गए हैं। संघ के ये बदलाव चर्चा में तो हैं, पर अस्तित्व में लोकसभा चुनाव के बाद आएंगे। संघ का तर्क इससे इतर है। उनका कहना है कि गर्मी में लगने वाले संघ शिक्षा वर्ग के बाद ही नए पदाधिकारी नई भूमिका में आएंगे।
…कांग्रेस छोड़ रहे नेता और 75 पार के दिग्विजय का संघर्ष
दिग्विजय सिंह राजगढ़ में मैदान संभाल चुके हैं और भाजपा को निशाने पर लेने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। वे एकमात्र ऐसे नेता हैं जो भाजपा के नेताओं को कठघरे में खड़ा करने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देते। यह सब उस दौर में हो रहा है, जब कांग्रेस छोडऩे वाले नेताओं की फेहरिस्त दिन-ब-दिन लंबी होती जा रही है। दिग्विजय के मैदान में आने के बाद राजगढ़ संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस को नई जान मिल गई है और सालों से घर में बैठे नेता उनके साथ मैदान संभालने लगे हैं। कुछ भी कहो जिस अंदाज में राजा ने मैदान संभाला है, राजगढ़ का चुनाव चर्चा में तो आ गया है।
रस्तोगी मानने को तैयार नहीं, अफसर सुनने को तैयार नहीं
आधी रात को मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव पद से बेदखल किए गए मनीष रस्तोगी, राघवेंद्र सिंह की भलमनसाहत के कारण जैसे-तैसे मंत्रालय की मुख्यधारा में वापसी कर पाए। लगा था इस पारी में कुछ बदले-बदले से रहेंगे, लेकिन जिस अंदाज में अपने ही विभाग के सचिव ललित दाहिमा से उनकी भिड़ंत हुई, उससे यह साफ हो गया कि मिजाज अभी भी वही है, जो शिवराज के जमाने में थे। दाहिमा भी चुप बैठने वाले अफसरों में नहीं हैं, वे मुख्य सचिव के पास पहुंचे और दमदारी से अपनी बात रखने के बाद फिर काम में लग गए। वैसे रस्तोगी के गाहे-बगाहे इस तरह आपा खो बैठने के पीछे का कारण समझना टेढ़ी खीर ही है।
कलेक्टर का एक झटका और अग्रवाल समूह नतमस्तक
खुद को नियम-कायदों से ऊपर समझने वाले इंदौर के अग्रवाल और चमेलीदेवी पब्लिक स्कूल के संचालकों को इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह ने एक झटके में ठीक कर दिया। आरटीई के तहत कमजोर वर्ग के बच्चों को अपने स्कूल से बेरंग लौटाने वाले स्कूल संचालक कलेक्टर के कड़े तेवर के चलते कुछ ही घंटे बाद पलक पावड़े बिछाते नजर आए। स्कूल प्रबंधन प्रशासन के सामने नतमस्तक हो गया है और यह आश्वासन भी दिया गया है कि भविष्य में ऐसी गलती नहीं होगी। इसी को कहते हैं प्रशासन का रुतबा।
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चलते-चलते
पता नहीं क्यों उज्जैन के शराब ठेके एक ही समूह को जाने के बाद भाजपा के कुछ नेता बहुत ज्यादा मुखर हो गए हैं। ये लोग दिल्ली में पार्टी के बड़े नेताओं के कान भरने में लगे हैं और यह दावा भी कर रहे हैं कि नतीजा लोकसभा चुनाव के बाद देखने को मिलेगा।
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पुछल्ला
सख्त छवि वाले आईपीएस अफसर अनुराग के इंदौर ग्रामीण रेंज का आईजी बनने के बाद सबसे ज्यादा परेशान वह शराब लाबी है जो जो अभी तक धार, झाबुआ और अलीराजपुर के पुलिस और आबकारी अधिकारियों से सांठगांठ कर गुजरात कनेक्शन को मजबूत रखे हुए थी। खुद को कई अफसर का खास बताने वाले इस लॉबी के एक बड़े ब्रोकर पर भी शिकंजा कसने की तैयारी है।
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बात मीडिया की
टीवी पत्रकारिता के चित परिचित चेहरे बृजेश राजपूत की अगवाई में विस्तार टीवी का 1 अप्रैल से आगाज हो गया है। एक बड़ी टीम के साथ राजपूत ने मैदान संभाल लिया है। पर्दे के पीछे मुकेश श्रीवास्तव इस चैनल के कर्ताधर्ता है।
हिंदुस्तान मेल को अलविदा कहने के बाद वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने अब खुलासा फर्स्ट में समूह संपादक की जिम्मेदारी संभाल ली है।
लंबे समय तक पत्रिका इंदौर में सिटी चीफ की भूमिका निभा रहे प्रमोद मिश्रा अब पत्रिका रतलाम के संपादकीय प्रभारी हो गए हैं।
पहले न्यूज टुडे में विशेष संवाददाता और बाद में पत्रिका में सीनियर रिपोर्टर के रूप में भाजपा, संघ और कलेक्टोरेट बीट में अलग पहचान बनाने वाले मोहित पांचाल अब पत्रिका इंदौर के सिटी चीफ हो गए हैं।
प्रजातंत्र में लंबे समय तक सेवाएं दे चुके विनोद शर्मा ने अब हिंदुस्तान मेल में बल्लेबाजी शुरू कर दी है। वे यहां डिप्टी एडिटर की भूमिका में टीम का नेतृत्व करेंगे।
लोकसभा चुनाव को लेकर अलग-अलग अखबारों के इंदौर संस्करण में विशेष टीम बनाई गई है, जिसके जिम्मे मालवा-निमाड़ के 8 संसदीय क्षेत्रों का कवरेज रहेगा।