जब अपने ही पुलिस अफसरों को करवाया था गिरफ्तार, जानें सीबीआई डायरेक्टर सुबोध जयसवाल की अनसुनी कहानी

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नई दिल्ली: सीबीआई की कमान आईपीएस ऑफिसर सुबोध जयसवाल के हाथ में सौंपी गई है। सीबीआई चीफ सुबोध जयसवाल अपने सख्त अनुशासन, अड़ियल और जिद्दी इंसान माने जाते हैं। आमतौर पर लोगों के बीच छवि बन गई है कि, सीबीआई प्रमुख सरकार का तोता होता है, जो सरकार की हां में हां मिलाता है लेकिन सुबोध जयसवाल का व्यक्तित्व इससे बिलकुल अलग है। उनकी इमेज रही है कि ना तो वे किसी राजनेता की सुनते हैं ना किसी के दबाव में आते हैं, बल्कि लकीर के फकीर की तरह जो कानून कहता है उसी मुताबिक चलते हैं। ऐसे में जो लोग उन्हें बखूबी जानते हैं, वे आश्चर्यचकित हैं कि उन्हें सीबीआई चीफ कैसे बना दिया गया और क्या वह अपना कार्यकाल पूरा कर पाएंगे? आज सुबोध जयसवाल के कुछ ऐसे ही किस्से बता रहे हैं, जिससे पुलिस महकमे में उनकी अलग छवि बनी हुई है।

जब अपने ही साथी पुलिस अफसरों को भेज दिया था जेल

1985 बैच के आईपीएस अधिकारी सुबोध जायसवाल मुंबई के पुलिस कमिश्नर और महाराष्ट्र के डीजीपी रह चुके हैं। दरअसल, सुबोध अग्रवाल उस समय चर्चा में आए थे, जब तेलगी स्कैम ने मुंबई पुलिस के कमिश्नर से लेकर कांस्टेबल तक गिरफ्तार हुए थे। जिस स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम ने यह गिरफ्तारियां की थी उनके एक अहम सदस्य सुबोध जायसवाल थे। जायसवाल ने ही तेलगी घोटाले की शुरुआती जांच की थी और दो रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी।

जयसवाल ने उन रिपोर्ट्स में बिना किसी दबाव में आए अपनी बात रखी थी कि, किस तरह से फर्जी स्टांप पेपर छापने का करोड़ों रुपए का रैकेट चलाने वाले अब्दुल करीम तेलगी से महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारियों ने रिश्वतखोरी की थी। तेलगी पुलिस वालों के लिए एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी थी। तेलगी को हिरासत में सुख सुविधाएं देने के नाम पर और उसके परिजनों को गिरफ्तार ना करने के लिए ब्लैकमेल किया जाता था और उससे वसूली की जाती थी। सुबोध जायसवाल ने इसका भंडाफोड़ कर दिया।

तेलगी घोटाले की जांच के समय सुबोध जायसवाल के हाथ एनसीपी के आला नेता छगन भुजबल और उनके भतीजे समीर भुजबल के गले तक पहुंच गए थे लेकिन साल 2004 में केंद्र मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार आ गई। इसके बाद तेलगी घोटाले की जांच एसआईटी से छीन ली गई और सीबीआई के सुपुर्द कर दी गई।

पुलिस महकमे में हुआ सामाजिक बाहिष्कार

तेलगी घोटाले का पर्दाफाश करने की वजग से वह महाराष्ट्र में अपने साथी पुलिस अधिकारियों के बीच विलेन बन गए। पुलिस महकमे में एक तरह से उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। पुलिसवालों ने उनसे बातचीत करना बंद कर दी। अपने घर के कार्यक्रमों में बुलाना बंद कर दिया। उन पर ताने कसे जाने लगे कि खुद एक पुलिस अधिकारी होकर अपने साथी पुलिस अधिकारियों का कैरियर में बर्बाद कर रहे थे। ऐसे में वह काफी अकेले हो गए थे।

सख्त अनुशासन परस्त के रूप में बनी इमेज

सुबोध जायसवाल की इमेज एक सख्त अनुशासन परस्त और लो प्रोफाइल अधिकारी की रही है, जो ना तो कभी पत्रकारों से मिलते हैं और ना कभी मीडिया को इंटरव्यू देते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि अगर वे अपने किसी वरिष्ठ अधिकारी के यूनिफॉर्म में भी कोई गड़बड़ी पाते हैं तो तुरंत उसको टोक देते हैं कि आपने सही यूनिफार्म नहीं पहना। जायसवाल कुछ वक्त तक भले ही मुंबई पुलिस कमिश्नर और महाराष्ट्र के डीजीपी रहे हों लेकिन उनके कैरियर का ज्यादातर वक्त ऐसी जगहों पर बीता जो कि पुलिस महकमे में पनिशमेंट पोस्टिंग मानी जाती है, जैसे कि राज्य आरक्षित पुलिस में और नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली में।

उनके बारे में कहा जाता है कि वह एक टीम प्लेयर हैं। यदि उनकी टीम का कोई सदस्य बेवजह किसी मुसीबत में फंस जाता है तो उसे बचाने के लिए वह अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं लेकिन यदि उन्हें कोई भ्रष्टाचार या गड़बड़ी करता दिख जाता तो उनकी कोशिश रहती कि वह शख्स सीधे पुलिस महकमे से बाहर हो जाए। जायसवाल की राजनेताओं से कभी नहीं बनी और यही वजह है कि महाराष्ट्र के डीजीपी पद पर ज्यादा दिनों तक नहीं बने रह सके।

 

 

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